आज के वचन पर आत्मचिंतन...

चाहे हम कितना भी कठिन प्रयास करे की परमेश्वर की अद्भुतता को पासके, वह अब भी परमेश्वर हैं और हम नहीं हैं । हमे हमेशा याद रखे की जो असल और प्रमुख पाप परमेश्वर की तरह बनने की कोशिश थी, ज्ञान और समझ के आधार पर । हमे परमेश्वर को जानना हैं, पर हम कभी भी पूर्णतः नहीं जान सकते। हमे उसके चरित्र को पहनना है, पर खुद से उसके प्रताप, धार्मिक्ता, या पवित्रता को नहीं पा सकते। यह दोनों रोमांचक और चिचिड़ाहट भरा हैं । पर यह वादा हैं की हम एक दिन उसके सामान होंगे और जैसा वह हैं उसको देख पाएंगे (१ यहून्ना ३:१-३) और उसे पूर्णतः जान जायेंगे जैसे खुदको जान जायेंगे (१ कुरिन्थियों १३:११-१२)।

मेरी प्रार्थना...

स्नेही चरवाहें, धन्यवाद् मेरे प्रति इतना धीरजवन्त होने के लिए जब मैं पूर्णतः आपके पवित्र और पारदर्शी चरित्र को समझ और प्रोत्साहित नहीं कर पाते। धन्यवाद् येशु को भेजने के लिए की मैं आपको बेहतर जान सका और खुद को खुदसे भी बेहतर रीती से जान सकू इसलिए आप पर भरोसा कर सकू । मैं आपको आमने सामने देखने के लिए उत्साहित हूँ की जब येशु मुझे घर लेजाने के लिए वापस आयेंगा। उस दिन तक कृपया वह जान ले की मैं आपसे प्यार करता हूँ । येशु के नाम से मैं अपना धन्यवाद और स्तुति भेट करता हूँ । अमिन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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