आज के वचन पर आत्मचिंतन...

संपत्ति, विशेषकर जो संपत्ति लालच से और दुष्टता से पाया हो उसका कोई स्थाई मूल साबित नहीं होता है। यह सड़ा धन उसके हृदय को भी सड़ा देता है जिसने इसे पाया हो और हमे हमारे अंतिम समाये से नहीं बचा सकता है । धार्मिकता, बल्कि यह बहुत ही अनमोल खजाना है। यह धार्मिकता अनंत परमेश्वर से है, अनुग्रह से विश्वास के द्वारा यह हमे भेट में मिला है, नैतिकता की हमारी सिमा से बढ़कर है और इतना सामर्थी है की हमारी आत्मा को मृत्यु से खरीद ले ।

मेरी प्रार्थना...

पवित्र और धर्मी परमेश्वर कृपया मुझे अपनी नज़र में धर्मी बना। मै चाहता हूँ की मेरी सर्वोच्या विरासत मेरी धार्मिकता हो नाकि मेरा ओहदा, उपलब्धिया और सम्पत्ति हो । मैं जानता हूँ की मेरी कामयाबियां मेरे पृथ्वी पर के जीवन खत्तम हो जाने बाद भुला दी जाएगी, लेकिन मैं पूर्णतः निश्चिंत हूँ की जो धार्मिकता आप मुझमे कार्यरूप में करते है वह मेरे जाने के बाद एक आशीष और उद्धरण होगा कई पीढ़ियों के लिए और जब मैं आपके साथ महिमा में होउँगा यह मेरा साथ का खज़ाना होगा । येशु के नाम से मैं प्रार्थना करता हूँ । अमिन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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