आज के वचन पर आत्मचिंतन...

जब पौलुस बंदीगृह में तकलीफों का सामना कर रहे थे उस समत वे अपने आप का नहीं बल्कि इफेसुस के लोगो की चिंता कर रहे थे|वे अपनी सुविधा के लिए न बरन एशिया माइनर के लोगो के लिए पौलुस ने त्य्चिचुस को भेजा ताकि उनको आशीष दे सके| यद्धपि उसके जीवन की कठिनाईयों एवं खतरे, के समय में भी पौलुस ने अपने आप के लिए न सोच कर दूसरो के लिए चिंता की| क्या सच में आज वो हामारे लिए एक उदाहरण के रूप में नहीं हैं? हम हमारी छोटी सी असुविधा के कारन दुखी हो कर अपने स्वाभाव को जो हमारे आस पास हैं उनके बीच ख़राब कर लेते हैं| परन्तु पौलुस का उदाहरण हमें दोषी ठहरता है और दूसरो के लिए हरेक परिस्थिति में बहुतायत की आशीष के लिए अगुवाई करता है|

मेरी प्रार्थना...

पिता, मुझे क्षमा करें क्योकि मेरी समस्याएं मेरे स्वाभाव को ख़राब करती हैं| चाहे परिस्थितियां कैसी भी क्यों न हों मैं दूसरो के लिए आशीष बनना चाहता हूँ| जब मैं अपने और अपनी परिस्थितियों पर जादा ध्यान दू तो आप मुझे अपनी आत्मा के द्वारा दोषी महसूस कराएँ| मेरे ह्रदय को आप अपने अनुग्रह से फैलाये ताकि मैं अपनी असुविधा को, समस्यायों को, संघर्ष, और चुनौतियों को मौके के रूप में बाट और प्रदर्शित कर सकूँ| येशु के नाम में प्रार्थना मांगता हूँ| आमीन|

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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