आज के वचन पर आत्मचिंतन...

हम जब मसीही बने, येशु ने हम पवित्र आत्मा का वरदान दिया (प्रेरितों के काम २ :३८; तीतुस ३ :३-७ ) आत्मा हममे वास करता है, हमारे शरीर को उसका मंदिर बना कर (१ कुरु ६ : १९ -२०) और हमे कई तरीकों से आशीषित करता है (रोमियों ८ ) । आकरात्मक, आलोचनात्मक, और हास्यास्पद समय के मुख पर भी हम लोग साहसी हो सकते है, परमेश्वर की उपस्तिथि के कारन । फल जो आत्मा उत्पन करता है (गलतियों ५ २२ : २३) और जो प्रेम आत्मा उंडेलता है हमारे दिलों में (रोमियों ५:५ ) वह हमे कमजोर नहीं बनाता है । बल्कि आत्मा की उपस्तिथि एक शक्तिशाली समर्थ है की हमे पाप पर विजय पाने में सहायता करती है (रोमियों ८:१३ ) और आत्मानुशासन जीवन जीता है ।

मेरी प्रार्थना...

पिता, मेरे जीवन में आत्मा की निरतर उपस्तिथि के लिए धन्यवाद् । मेरे दैनिक जीवन की अपनी चुनौतियों का सामना करता हूँ तब और भी अधिक साहस से और शक्ति से कृपया मुझे सामर्थी बनाइए। येशु के नाम से मैं प्रार्थना करता हूँ । आमीन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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