आज के वचन पर आत्मचिंतन...

प्रेम स्वयं पर केंद्रित नहीं होती, वरन औरों पर। प्रेम के यह प्रत्येक गुण निर्भर है लगाव, कृपा, और क्षमा के व्यहवार पर जो दूसरों को मूल्यवान महसूस कराता हैं और यह नहीं की मैं मूल्य को स्वयं पर और स्वयं की इच्छाओं पर नहीं लगाता हूँ। इसमें अचम्भे की बात नहीं की पुरानी कहावत हैं की " पापी के मन में अहम् बड़ा होता हैं!" जब "मैं"दूसरों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता हैं और ' मुझे" क्या चाहिए हैं और "मेरी" जीत अधिक महत्वपूर्ण हैं बजाय इसके की किसी को सचमे क्या आवश्कयता हैं, तो "मैं" रह भटक गया हूँ और मसिष के प्रेम को नहीं दर्शा पा रहा हूँ ।

मेरी प्रार्थना...

पवित्र परमेश्वर और बलिदानी पिता, मुझे सीखा की मैं दूसरों पर ध्यान दे सकू और उनको महत्व जान सकू जैसे आप करते हैं । मैं जनता हूँ की आपने मुझसे प्रेम किया जब प्रेम करने योग्य नहीं था और मुझे छुड़ाया जब मैं योग्य नहीं था ।मेरी सहायता कर की मैं अपनी आंखें खुद पर से हटा सकू और दूसरों को वैसे देख सकू जैसे आप देखते हैं। येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ। आमीन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। phil@verseoftheday.com पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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