आज के वचन पर आत्मचिंतन...

निश्चित रूपमे यह परमेश्वर के यरुशलम मंदिर के दिनों से संबोधित है। इसे हमारे लिए भी समर्ण रखे, परमेश्वर की नई वाचा, परमेश्वर का मंदिर उसकी कलिस्या है ( १ कुरु ३:१६) और हमारा शरीर ( १ कुरु ६:१९)। तो इस कलीसियाई परिवार को मान दे और आनंद से उत्सव मनाए। हम अपने शरीर से भी परमेश्वर को महिमा दे ! आओ हम लोगो के बिच में, अकेले और समाज में परमेश्वर के नाम को धन्यवाद् और स्तुति दे।

मेरी प्रार्थना...

पिता, यीशु के बलिदान के कारन, मैं आपके सबसे पवित्र स्थान में प्रवेश करता हूँ और आपका सम्मुख अता हूँ| यह जानकर की आप विनती सुनते है मैं बहुत उत्तेजित हूँ | यह जानकर मैं बहुत आनंदित हूँ की आप मेरा स्वागत करते है| मैं आपके साथ पाकर खुश हूँ और जो कुछ अपने मेरे लिए किया है उसको मैं सरहाता हूँ| तक हम आमने सामने उस स्वर्गीय घर में नहीं मिलते आपका धन्यवाद् की मुझे आप प्रार्थना के लिए इस जगह मिले| यीशु के नाम से| आमीन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

टिप्पणियाँ