आज के वचन पर आत्मचिंतन...

व्यग्रता उन बातों की चिंताएं है जो हम काबू नहीं कर सकते और जो हम अपने सोच से नहीं निकलते है। व्यग्रता हावी होता है और नियंत्रण करता है एक निष्क्रिय मन और दुखित हृदय, दोनों को शंका, भय और अत्यंत भय से भरता है। परंतु चिंता नहीं हटाई जा सकती; इसका स्थान लिया जा सकता है। हम अपनी चिंताए प्रभु को देने के द्वारा हटाते है, उस पर भरोसा रखते हुए की उसे हमारा ध्यान है। फिर, जब हम उसे धन्यवाद् देते है जो उसने हमारे लिए किया और हमारे जीवनो में कर रहा है, हम उन चिंताओं और खयालो को परमेश्वर के उपस्तिथि के सच्चे एहसास से बदलते है। परिणाम सवरूप, हमारा आत्मविश्वास उसके भविष्य हमारे प्रति जो है उसको लौटाता सकता है।

मेरी प्रार्थना...

पिता, मैं जनता हूँ कि आप मुझे प्रेम करते हो। आपने मुझे आशीषित करने और मेरी रक्षा करने के लिए बहुत कुछ किया है। मैं जानबूझ कर आपके हाथों में मेरी चिंताए और मेरे दिल की ख्यालओं को राखता हूँ ............(विशेष रूप से वे बाते जो आज आपके दिल पर बोझ है)। पिता,आपने कई तरह से मुझे जीवन में आशीषित करने के लिये धन्यवाद.....(विशेष रूप से परमेश्वर से जो आशिष आपको मिला है उनका ज़िक्र किजीये)। अब, प्रिय पिता, कृपया अपनी आत्मा से मेरे दिल को भर दीजिये और मेरे मन को अपने उपस्तिथि के और शांति के एहसास से भरे। येशु के नाम से प्रार्थना मांगता हूँ। अमिन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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