आज के वचन पर आत्मचिंतन...

कल्पना कीजिये यीशु आप पर गर्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा हैं की यदि हम उनका अंगीकार यह इस पृथ्वी पर करते हैं तो वह हमारे लिए स्वर्ग में और से बोलेंगे। यीशु का अंगीकार साधारणतः बस सत्य को मानना होता हैं । परन्तु विश्वासियों के लिए, यह उससे भी बढ़कर हैं, जबकि अंत के समय के निकट हर एक घुटना झुकेंगे और हर एक जीभ उसके नाम को अंगीकार करेंगी । हमारे लिए, यीशु को अंगीकार करने का मतलब हैं की हम उसके जीत में शामिल हैं जिसमे हम भाग भी लेंगे।

मेरी प्रार्थना...

सामर्थी परमेश्वर, आपका बीटा मेरे प्रभु हैं, मैं उनसे प्रेम करता हूँ और छुटकारे के उनके बलिदान के लिए मैं स्तुति करता हूँ । मैं कब्र के उनकी जीत के लिए धन्यवाद देता हूँ। मैं उनके त्यागपूर्ण और विजयी अनुग्रह पर अचंभित हूँ । यीशु प्रभु हैं । मैं जनता हूँ यह आपके कानों में सुनने में मधुर लगता हैं जब मैं इसे दुबारा केहता हूँ, यीशु मेरा प्रभु हैं। इतना महान होने के लिए धन्यवाद की आप इतने त्यागपूर्ण हैं । यीशु बड़ाई जो मेरा प्रभु और मुक्तिदाता हैं उसके नाम से, मैं अपनी धन्यवाद की भेट चढ़ाता हूँ । आमीन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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