आज के वचन पर आत्मचिंतन...

यदि २० ई.सा पूर्व आपको यीशु के नासरत का पता मालूम होता, तो आप उनके घर जाकर कह सकते की," परमेश्वर यंहा रहते हैं!" जबकि यीशु की शिक्षा को समझना लगभग असंभव हैं की यह पूर्णतः परमेश्वर और पूर्णतः मनुष्य था— वह पूर्णतः परमेश्वर था फिरभी उसने खुदको अपने देवनिया अधिकारों से पूर्णतः खाली कर दिया (फिलिपियों २:५-७), फिरभी यह अनुग्रह की अद्धभुत वास्तविकता हैं। परमेश्वर ने हमसा होना चुना क्योकि हम उस जैंसे नहीं हो सकते थे। वह हमारे पास आया क्योकि हम उस तक नहीं जा सकते थे। यीशु में होकर, परमेश्वर हमारे पास परिपूर्णता में आया की हम उसमे पूर्ण हो सके।

मेरी प्रार्थना...

सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं यह मानता हूँ मैं आपको समझ सकू इससे आप काफी महान हैं। तौभी आप जो इतने शानदार, सामर्थी और अद्धभुत हो, मेरा मन आपको समझ सके इससे भी आप महान हो। और आपका अनुग्रह हे परमेश्वर, मुझे आश्चर्यचकित करता हैं । येशु को भेजने के लिए धन्यवाद, की मैं आपको जान पाया। येशु को भेजने के लिए धन्यवाद की, मैंने क्षमा पायी। येशु को धन्यवाद् की मैं आपके पास घर तक आ पायाऔर अनंतकाल के लिए जी सकू। धन्यवाद येशु मुझे छुड़ाने के लिए आनेके लिए और लौटने के लिए की, आपके जरिये मैं पिता से बात कर सकू। आपके नाम से और आपके अनुग्रह के द्वारा, मैं अपने पिता के आगे हियाव से प्रार्थना करता हूँ। अमिन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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