आज के वचन पर आत्मचिंतन...

क्या आप आलोचनात्मक है ? क्या आप सोचते है की आप अगले व्यक्ति के हृदय के उद्देश्य को आंक सकते है ? क्या आप दुसरो के क्रियाओ के प्रति आलोचक और नकारात्मक है ? येशु चाहते है की हम यह जानले की हम किसी के हृदय के प्रेरणा को नहीं जान सकते । जब हम दुसरो के प्रति हमारे परख ने में अनुचित तौर पर कठोर और तीखे तौर पर आलोचक होते है , तो हम अपने लिए एक माप तय करते है जिससे परमेश्वर हमारा न्याय करेगा। मुझे आपके विषय में तो पता नहीं पर मैं परमेश्वर के अनुग्रह को अपने अकारण कठोरता से बदलना नहीं चाहता । मैं दुसरो को दया और अनुग्रह से देखने प्रति कठिन परिश्रम करूँगा ।

मेरी प्रार्थना...

प्रिय परमेश्वर, कृपया मुझे क्षमा कर की दुसरो के प्रति मेरे अनुचित तौर पर कठोर और आलोचक रूप से व्यहवार के लिए । धन्यवाद् की आप अपनी दया और अनुग्रहके साथ इतने धनवान और आज़ाद है जो येशु में मुझ पर उदारता से है। कृपया मेरी सहायता कर की मैं मसीह में मेरे भाइयो और बहनो के साथ उनके इच्छाओ और उद्देश्य के विषय में अधिक दयावान और अनुग्रहकारी रीती से व्यहवार करू । येशु के नाम से प्रार्थना करता हूँ। अमिन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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