आज के वचन पर आत्मचिंतन...

यदि आप कभी किसी प्रियजन की कब्र की तरफ खड़े हो गए हैं, तो यह विचार शायद आपके दिमाग को पार कर गया है, अगर आप केवल यहाँ थे, परमेश्वर! जब हम आघात होते हैं तो यीशु कहाँ है? वह हमारी मदद करने के लिए यहाँ क्यों नहीं हो सकते है? स्मरण रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उत्तर हैं। सबसे पहले, यीशु हमारे नुकसान और दु:ख के क्षणों में हमारे साथ हैं। कलीसिया यीशु कि देह है, और दया, सहायता, आराम, और मदद का हर कार्य यीशु हमारे दुःख को कम करने के लिए कर रहा है। दूसरा, जबकि वह हमारे प्रियजन को इस जीवन से अगले जीवन तक जाने से नहीं रोका, तो वह शारीरिक रूप से मर चुके प्रत्येक मसीहीओं के लिए स्थायी और अटूट उपस्थिति रही । पौलुस हमें स्मरण दिलाता है कि जब कोई विश्वासी मरता है, तो वह मसीह के पास चला जाता है (2 कुरिं: 5:6-7; फिलि: 1: 21-23) और परमेश्वर की प्रेमी उपस्थिति उससे कभी नहीं खोती । (रोम:8: 35-39)

मेरी प्रार्थना...

पवित्र पिता, कृपया मेरे नुकसान और दु:ख के समय में यीशु की सहायतार्थ उपस्थिति को ढूंढ़ने में मेरी सहायता करें। मुझमे वास करने वाली उस पवित्र आत्मा की सांत्वना देने वाली उपस्थिति में उन्हें ढूंढ़ने में मेरी मदद करें। उन्हें प्रेम और दया के कार्यों में ढूंढ़ने में आपके लोग मेरी सहायता करें | इसके अलावा, प्यारे पिता, कृपया मुझे ऐसे अवसरों को ढूंढ़ने में मदद करें, जिनसे मैं यीशु की उपस्थिति के रूप में जो दुःख का अनुभव कर रहें हैं उनकी सेवा कर सकूँ । यीशु के नाम से मैं प्रार्थना करता हुँ | आमीन !

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

टिप्पणियाँ