आज के वचन पर आत्मचिंतन...

मनुष्य होने के नाते, हमे यह सोचना पसंद है की हम ब्रह्माण्ड के केंद्र बिंदु है। हम अधिकतर कामो की महानता या वैद्यता हम पर होनेवाले प्रभाव के आधार पर निर्धारित करते है। हम अपने बारे में मानते है की हम महान साहसी, आविष्कारक, और जांचकर्ताये है। हालाकि,सबसे महतापूर्ण खोज में,हमने पहले कार्य नहीं किया है;लेकिन परमेश्वर ने किया है। उसने हमे त्यागपूर्ण प्रेम किया है। उसने हमें व्यक्तिगत रूप से प्रेम किया था।उसने हमे पहेले प्रेम किया। हमारा प्यार उसके अनुग्रह का एक प्रतिक्रिया है। जो प्रेम हम पर बहुतायत से लुटाया गया है उस प्रेम को साधारणतः दूसरों से बटना है। हम प्रेम करते है क्यूँकी उसने हमसे पहले प्रेम किया है।

Thoughts on Today's Verse...

As human beings, we like to think of ourselves as the center of our universe. We determine the greatness or validity of most deeds based on their impact upon us. We consider ourselves great adventurers, inventors, and investigators. However, in the most important quest of all, we did not act first; God did. He loved us sacrificially. He loved us personally. He loved us first. Our love is a response to his grace. Our love is simply sharing with others what has been lavished upon us. We love because he loved us first.

मेरी प्रार्थना...

सर्वशक्तिमान परमेश्वर और अब्बा पिता,बीते हुए कुछ दिनों में मैंने आपके प्रेम को समझने की कोशिश किया है जो आप मुझसे और और मेरे साथी मनोवो से करते हो। पर मैं यह दावा नहीं करता की मैं आपके प्यार को समझता हूँ, लेकिन मैं जनता हूँ कि आपने मुझे उससे उन तरीकों से आशीषित किया है जिनकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ। प्रिय पिता,जब मैं परीक्षा का सामना करू, आपके प्रेम पर संदेह करू, अपने मूल्य के बारे में सोचु, कृपया सहायता करे की मैं आपके महान प्रेम को याद कर सकू। मैं चाहता हूँ कि मेरे दैनिक जीवन में आपका प्यार प्रतिबिंबित हो। हमे बहुतायत से प्यार करने के लिए धन्यवाद। त्यागपूर्वक प्यार करने के लिए धन्यवाद। सब से अधिक, पहले प्यार करने के लिए धन्यवाद! यीशु के नाम से में आपको धन्यवाद करता हूँ। अमिन।

My Prayer...

Almighty God and Abba Father, over these last several days I have tried to understand your love for me and my fellow humans. I don't profess to understand your love, but I do know that you have blessed me with it in ways I could not have imagined. So please, dear Father, help me remember your great love for me when I am faced with temptation, led to doubt your love, or wonder about my worthiness. I want your love to be reflected in my daily life. Thanks for loving mightily. Thanks for loving sacrificially. Most of all, thanks for loving first! In Jesus' name I thank you. Amen.

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

Today's Verse Illustrated


Inspirational illustration of १ यूहन्ना ४:१९

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