आज के वचन पर आत्मचिंतन...

अनंत जीवन शुरू होता है, अब ! जो की येशु के सन्देशो में से एक सन्देश यहुन्ना के सुसमाचार में है| निश्चय ही हम सब आशीषो का आनंद नहीं ले पाते जो हमारी बाट जोहती है जब हम जाते है हमारे पिता के घर में | परन्तु येशु चाहता है की हम जाने और अनुभव करे उसके प्यार को और पिता की सहभागिता को हमारे जीवन में | अब ! उसने हमारे लिए प्रार्थना तक की है ! तो आओ पिता को खोजे ...... सिर्फ उसके बारे में जान्ने क लिए नहीं परन्तु उसे जान्ने के लिए | और वह उसके प्रतिकूल हमारी ओर निकट आता है ओर आएगा भी जैसे हम उसके निकट आते है | वह हममे क्रियाशील है, तो वास्तव में विषय उसकी निकटता नहीं, परन्तु उसकी उपस्तिथि ओर कार्य के प्रति हमारी जागरूकता है | तो क्यों न हम अपनी आँखों ओर हृदयों को अपने पिता के लिए खोले ओर उससे मांगे की वह हम पर अपनी उपस्थिति को प्रकट करे |

Thoughts on Today's Verse...

Eternal life begins, now! That is one of Jesus' messages in the Gospel of John. For sure, we don't get to enjoy all of the blessings that await us when we go home to the Father. But, Jesus wants us to know and to experience his love and the Father's presence in our lives, now! He even prayed it for us! So let's seek the Father — not to just know about him, but to know him! He longs to draw near to us and will do so as we draw near to him! He is at work in us, so the real issue isn't his nearness, but our awareness of his presence and work. Let's open our eyes and our hearts to our Father, and ask him to reveal his presence to us!

मेरी प्रार्थना...

हे मेरे स्वर्गिय पिता, यह मुझे आश्चर्यचकित कर देता है की तूने मुझे अपने इतने निकट आने दिया, मेरे सर्वशक्तिमान और पवित्र परमेश्वर | मै नम्र हुआ हूँ तेरी उस प्रतिज्ञा के कारण, की तू मेरे जीवन में क्रियाशील है |मुझे क्षमा कर की मै अपने अब तक के जीवन भर में बोहत ही स्वार्थी था और तेरे सहभागिता और अनुग्रह के ज्ञान से अनभिज्ञ था| मुझे अपनी ईश्वरकृत्य देख-भाल और तेरी पवित्र आत्मा के द्वारा अपनी सहभागिता को जो प्रत्येक दिन मुझमे होती है, उसके प्रति जागरूक कर| मेरी आँखों और हृदये को खोल मेरे परमेश्वर की मै तुझे और भी अद्भुत रीती से और पूर्ण रूप से जान सकू |आमीन |

My Prayer...

It amazes me, Heavenly Father, that you let me approach you, the Almighty and Holy God. I am humbled by your promise to be at work in my life. Forgive me for the times that I have been so full of myself that I have not acknowledged your presence and grace. Make me more aware of your providential care and your daily presence in me through your Spirit. Open my eyes and heart, dear Lord, that I may know you more fully. In the name of Jesus. Amen.

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

Today's Verse Illustrated


Inspirational illustration of यहुन्ना १७ :३

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