आज के वचन पर आत्मचिंतन...

जब यहोशु ने मूसा के बाद स्थान लिया तब यहोशु को ये वचन प्राप्त हुआ, तो ये वचन हमारे लिए भी लागू होते हैं। थोड़ी देर समय निकले और भजन १३९ को ज़ोर से पढ़ें और देखें कि परमेश्वर का हमारे साथ रहने का वादा सभी के लिए है जो वास्तव में उसके द्वारा बुलाए गए हैं। मत्ती 28: 18-20 में यीशु के शब्दों को सुनो, जैसा कि उसने अपने चेलों से कहा था कि "वे हमेशा उनके साथ रहेंगे, यहां तक ​​कि उम्र के अंतिम क्षण तक।" ईश्वर के वादे को याद रखें, इब्रानियों 13:5 में एक पुराने नियम के आशीर्वाद को दोहराया गया, "मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा, और कभी नहीं त्यागूँगा!" आईए हम मजबूत हो जाएँ; हमारे परमेश्वर, हमारे पिता, हमारा चरवाहा हमेशा हमारे निकट रहता है, भले ही ऐसा हमें न लगे। जब तक उसकी उपस्थिति हममें या हमारे पास न हो हम उसके के बिना कहीं भी नहीं जा सकते। हम अकेले नही है। हमें डरने की ज़रूरत नहीं है वास्तव में, देखा जाये तो मृत्यु भी हमें उसके प्रेम से अलग नहीं कर सकती| (देखें रोमियो 8:35-39)।

मेरी प्रार्थना...

मेरे समीप हों, प्रिय पिता, न केवल आपके वादे में, न केवल आपकी मौजूदगी के साथ ही वरन मेरी जागरुकता में भी। मुझे यह जानना आवश्यक है कि जब आप मेरे सामने अविश्वसनीय अवसरों का जवाब देते हैं, तो आप निकट होते हैं। मुझे आपकी मदद में और निरंतर रहने वाले प्रेम में आप पर भरोषा होना चाहिए जब मैं मेरे जीवन में कठोर चुनौतियों का सामना करूँ| मैं आपके सफल प्रेम पर भरोसा करता हूँ| येशु के नाम में। आमीन।

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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