आज के वचन पर आत्मचिंतन...

भक्ति के साथ संतोष का होना बहुत बड़ा धन है! (देखे १ तिमथी ६:६)तो संतोष जनक जीवन के लिए क्या चाहिए? पौलुस तिमोथी को याद दिलाता है की जब तक हमारे पास खाना और कपडे हैं हम संतोषमय जीवन जीने के योग्य बन सकते हैं| लेकिन जब हमारी इच्छाएं बढ़ जाएँ, जब लालच और अभिलाषा हमारे ऊपर हावी हो जाये तब हमारा जीवन अनियंत्रित हो जाता है और हम अपनी भूख को परमेश्वर का स्थान दे देते हैं जो की मूर्तिपूजा के सामान है| (कुलुस्सियों ३:५)

मेरी प्रार्थना...

पवित्र परमेश्वर, मुझे क्षमा करे अब तक मेरा जीवन अधिक पाने का लालच और अधिक ब्यय करने की अभिलाषा में लिप्त रहा| जो आशीषे अपने उदारता से मुझे दीं हैं उनमे संतोषमय जीवन जीने में मेरी सहायता करे ताकि जो आनंद अपमें और उन लोगो में, जिन्हें आपने मेरे जीवन में दिए हैं अपना आनंद पा सकूँ| येशु के नाम से मांगता हूँ| आमीन!

आज का वचन का आत्मचिंतन और प्रार्थना फिल वैर द्वारा लिखित है। [email protected] पर आप अपने प्रशन और टिपानिया ईमेल द्वारा भेज सकते है।

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